कामिनी की कामुक गाथा (भाग 38)

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पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि किस तरह मैं श्यामलाल और बलराम के हवस की आग में झुलसते हुए अपनी कामक्षुधा तृप्त करती करती बलराम के ड्राईवर घासीराम की गोद में जा गिरी। घासीराम जैसा निहायत ही अनाकर्षक नाटा व्यक्ति भी मेरे लिए काफी संतोषजनक पुरुष साबित हुआ, जो 60 साल का होते हुए भी मेरी उद्दाप्त कामक्षुधा को सफलतापूर्वक मिटा सकने में सक्षम था। उस दिन पहली बार संयोग से जब मैं उसके बिस्तर तक पहुंची और हमारा एक दौर का संभोग संपन्न हुआ ही था कि बलराम का दूसरा ड्राईवर सरदार आ धमका। हम अपनी कामक्रीड़ा में इतने लीन थे कि उसके आने की आहट भी हमें सुनाई नहीं पड़ी। कमरे का दरवाजा सिर्फ उढ़का हुआ था, जल्दबाजी में घासीराम दरवाजा अंदर से बंद करना भूल गया था शायद। हमारे संभोग के अंतिम चरण में ही उसका पदार्पण हुआ था। जो कुछ उसने देखा, वह यह बताने के लिए काफी था कि मैं कितनी बड़ी चुदक्कड़ हूं।

अब आगे……

अभी घासीराम के साथ मेरी कामलीला खत्म ही हुई थी कि हम चौंक पड़े, “साले मादरचोद, इतनी मस्त माल को अकेले अकेले चोद लिया।” एक अजनबी आवाज पीछे से आई। सर उठा कर देखा तो एक हट्ठा कट्ठा, करीब 50 साल का सरदार खड़ा था। इससे पहले कि घासीराम कुछ बोलता, सरदार बोलने लगा, “साले हरामी, आज तक मजदूर रेजा, कोयला चुनने वाली औरतों और भिखमंगी औरतों को चोदने वाले कमीने, आज एक खूबसूरत औरत मिली तो अकेले अकेले हाथ साफ कर लिया भैणचोद।”

मैं पूरी नंगी अवस्था में अपने को ढंक सकने में अक्षम थी। मेरे कपड़े फर्श पर पड़े मुझे मुह चिढ़ा रहे थे। मैं हड़बड़ा कर उठना चाह रही थी कि सरदार ने मुझे दबोच लिया। “जाती कहाँ है मेरी जान, अभी तो मैं बाकी हूँ। कुछ देर में साहिल भी आ जाएगा। साली भैण की लौंडी, जब तक हम तुझे चोद नहीं लेते तू यहीं पड़ी रह। अबे ओ कलुए, मादरचोद, ग्लास में दारू डाल, अब मेरे साथ मैडम भी पिएगी। फिर मैं अपने लौड़े का जलवा दिखाऊंगा इस मैडम को। पहली बार ऐसी मस्त माल मिली है।” हाय राम, मैं यह कहाँ फंस गई थी। सरदार काफी हृष्ट पुष्ट आदमी था। रग्बी खिलाड़ियों की तरह उसके कंधे काफी चौड़े थे। हाथों की कलाईयाँ मेरी कलाईयों से करीब तीनगुना मोटी थीं। कद मुझसे करीब एक इंच छोटा ही होगा किंतु शरीर बेहद फैला हुआ और कुश्ती करने वाले पहलवानों की तरह गठा हुआ। सर पे सिर्फ फटका बांधा हुआ था। तेल मोबिल के दागों वाली गंदी शेरवानी पहने था।

“प्लीज सरदार जी अब मुझे जाने दीजिए। मैं बहुत थक चुकी हूं।” मैं सरदार जी की मजबूत पकड़ में छटपटाती हुई घिघियाते हुए बोली।

“ऐसे कैसे जाने दूं कुड़िए। इतनी खूबसूरत नंगी औरत सामने हो और न चोदूं, ऐसा कैसे हो सकता है। तेरी थकान का इलाज तो मैं अभी करता हूँ। अबतक घासीराम तीन ग्लास में देसी दारू भर कर ले आया। एक ग्लास सरदार लिया, एक ग्लास घासीराम लिया और तीसरा ग्लास मुझे देने लगा, “ले ले कुड़िए, पी जा, फिर देख तेरी सारी थकान कैसे गायब हो जाएगी।”

“नहीं, मैं नहीं पियूंगी,” मैं मना करने लगी। देसी दारू की तीखी महक मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी।

“ओए कुड़िए, नखरे न कर। चुपचाप पी ले, तभी तू मजे ले सकेगी, नहीं तो हम तो वेसे भी तुझे बिना चोदे छोड़ेंगे नहीं, जो तू बर्दाश्त नहीं कर पाएगी।” सरदार मेरे अंग अंग को ललचाई नजरों से घूरते हुए गुर्राया। उसके तन से दुर्गंध का भभका आ रहा था, पता नहीं कितने दिनों से नहाया नहीं था। जब उसने देखा कि मैं ऐसे नहीं मान रही हूँ, एक हाथ से मुझे दबोच कर दूसरे हाथ से दारू का ग्लास उठाया और मेरे मुह से लगा दिया। न चाहते हुए भी मुझे मजबूरन उस तीखे महक वाली देसी शराब अपनी हलक में उतारनी पड़ी, ऐसा लगा मानो मेरे गले को जलाती हुई मेरे पेट के अंदर पहुंची हो। कुछ मेरे होठों से होते हुए मेरी गर्दन, चूचियों, पेट और योनि तक बह गयी। इतनी कड़ी शराब मैंने जिंदगी में पहली बार पी थी। शराब तुरंत ही अपना असर दिखाने लगा। मेरे शरीर की धमनियों में रक्त का संचार तूफानी गति से होने लगा। सारी थकान, और बदन की पीड़ा मानो कुछ ही पलों में छूमंतर हो गयी। नशे से मेरी आंखें बोझिल होने लगी किंतु ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर पुनः वसना की ज्वाला भड़क उठी हो। मेरी हालत सरदार की अनुभवी आंखों से छिपी न रह सकी। अब वह मेरे नंगे बदन के उतार चढ़ाव को बड़ी भूखी आंखों से देखने लगा। उसकी नशे से सुर्ख आंखों में किसी भूखे भेड़िये सी चमक आ गई।

“वाह कुड़िए, आ गयी न जान तेरे बदन में?” मेरे नंगे बदन को अब भूखी नजरों से घूरने लगा। एक हाथ से मुझे थामे हुए था और दूसरे हाथ से मेरी चूचियों को मसलते हुए बोला “एक ग्लास दारू और दे घासीराम, फिर इस लौंडिया से मस्ती करूँगा।”

“ओह्ह्ह्ह, मुझे ददर्रर्द होता है, ऐसे मत दबाआआईईएएए नाआआआह्ह्ह” मैं नशे से बोझिल आवाज में बोली।

“दर्द होता है, दर्द होता है? साली जब घासीराम नोच रहा था तो दर्द नहीं हो रहा था?” सरदार बेरहमी से मेरी चूचियों को दबाते हुए बोला। मैं समझ गई कि मेरा कुछ बोलना या विरोध करना बेमानी है। मैंने अपने शरीर को उस जालिम के रहमो करम पर समर्पण की मुद्रा में ढीला छोड़ दिया। चलो अब जो होना है, हो ही जाय तभी मुझे मुक्ति मिलेगी। उसने मेरी समर्पण की मुद्रा को भांप कर मेरे नग्न शरीर को अपने बंधन से मुक्त किया और अपने कपड़े उतारने लगा। जब वह पूरी तरह से नंगा हुआ तो उसके भीमकाय कसरती शरीर को देखकर मेरी रगों में बिजली सी कौंध गई। मैं भीतर ही भीतर सनसना गई। सारा शरीर गर्दन से नीचे बालों से भरा हुआ था। उसका तनतनाया हुआ लिंग बहुत लंबा नहीं था, करीब सात इंच रहा होगा लेकिन मोटा इतना कि मेरी घिग्घी बंध गई। किसी घोड़े के लिंग की तरह मोटा। “आज तो तेरी चूत का भुर्ता बनने से कोई नहीं बचा सकता साली कामिनी”, मैं मन ही मन भगवान को याद करने लगी। अबतक घासीराम दारू का दूसरा ग्लास ला चुका था। सरदार एक ही सांस में पूरा ग्लास गटक गया। उसकी नशे से सुर्ख आंखों को देखकर मेरे शरीर में झुरझुरी दौड़ गई। अब तक मैं अपने मन को तैयार कर चुकी थी, अपने ऊपर आने वाली कयामत के लिए।

दारू का ग्लास गटकने के पश्चात वह मेरे कामोत्तेजक तन को कुछ पलों तक निहारा और अपनी खुरदुरी हथेलियों को मेरे गालों, मेरी गर्दन, मेरी उत्तेजना से फूलती पिचकती बड़ी बड़ी चूचियों से होते हुए मेरी कमर और फिर ओह मां््आआंंआं, धीरे धीरे मेरी चूत के पास ले आया, मेरी योनी पर उसकी खुरदरी हथेलियों का स्पर्श मुझे अंदर तक तरंगित करने लगा। मेरे अंदर उत्तेजना का मानो सैलाब आ गया।

“ओय छिना्आ्आ्आ्आल, तेरी चूत है कि घोड़ी का भोसड़ा? साली इतनी बड़ी चूत तो पहली बार देख रहा हूं रे घासीराम। कितने लोगों से चुदी है रे रंडी? बिल्कुल कुत्ती है साली मां की लौड़ी। चलो कोई नहीं, अच्छा ही है, मेरा लौड़ा आराम से ले लेगी।” सरदार लार टपकाती नजरों से मेरी पावरोटी जैसी चूत को देख कर बोला।

“अरे तेजू, इसके भोंसड़े की साईज पर मत जा। बहुत टाईट है साली की चूत। चोद के तो देख, मजा न आए तो कहना। लगती है घोड़ी के चूत जैसी, लेकिन मजा देती है सोलह साल वाली लौंडिया के चूत जैसी। जब मेरा लौड़ा लेने में रो रही थी तो तेरी तो बात ही और है। हमसे भी डबल मोटा, साले घोड़े लंड वाले सरदार।” घासीराम तेजेन्द्र को उकसाता हुआ बोला। देख कर ही सिहर उठी थी मैं, उसपर घासीराम की भयभीत करने वाली बातें। सरदार उसकी बात पर ऐसे कैसे विश्वास करता हरामी, अपने हाथों से मेरी योनी को सहलाते सहलाते अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी रसीली यौन गुहा में उतार दिया, “आह्ह्ह्ह्ह” मेरे मुह से आनंद भरी सिसकी निकल पड़ी।

“उफ्फ्फ, सच्ची रे घासीराम, टाईट भी है और गरम भी। वाह, मजा आएगा इसकी चूत चोदने में। चल मैं तूझे कुत्ती की तरह चोदुंगा,” कहते हुए मुझे किसी हल्की फुल्की गुड़िया की तरह पलट दिया। “अरे वाह, इसकी गांड़ तो गजब की है रे घासीराम, इतनी मस्त, गोल गोल, चिकनी और बड़ी बड़ी।” मेरे नितंबों पर चपत लगाते हुए बोला। “इसकी गांड़ चोदने का तो मजा ही कुछ और होगा, लेकिन पहले इसकी चूत का मजा तो ले लूं।”

कांप उठी मैं उसकी बातें सुनकर, “तो क्या इतने मोटे लिंग से मेरी गुदा का हाल बेहाल करने की सोच रहा है कमीना?” मैं भयभीत हो उठी, लेकिन मेरे भय पर मेरी कमीनी कामुकता हावी हो गई। “अब मेरी चूत चोदे या गांड़, परवाह नहीं, ट्राई करने में हर्ज ही क्या है,” मैं सोचने लगी। भय, उत्सुकता और उत्कंठा के मिले जुले भाव के साथ झिझकते हुए मैं उसकी कुतिया बन गई। वह मेरे पीछे आया और अपने घोड़े जैसे लिंग का विशाल सुपाड़े पर थूक लगाकर मेरी योनि के प्रवेश द्वार से सटा दिया। उफ्फ्फ उसके लिंग का वह स्पर्श मेरी योनी पर, सनसना उठी मैं, मेरी सांसे धौंकनी की तरह चल रही थीं। उसने मेरी कमर को बेहद सख्ती से थामा और धीरे धीरे अपने लिंग पर दबाव देने लगा। जैसे ही उसका सुपाड़ा मेरी योनी को चीरता हुआ फच्च से अंदर घुसा, ऐसा लगा मेरी योनी फट गई हो।

अकथनीय पीड़ा से मैं चीख पड़ी और जिबह होती बकरी की तरह छटपटाने लगी, “आह्ह्ह्ह्ह मैं मरी ओह प्लीज सरदार जी, छोड़ दीजिए मुझे, आह”, मेरा सारा नशा काफूर हो गया। बाप रे बाप, इतना मोटा लिंग आज तक मैं ने झेला नहीं था। मेरी चीख पुकार का उस सरदार पर कोई असर नहीं हुआ, उल्टे मेरी कमर और जोर से पकड़ कर अपने विशाल लिंग को जबर्दस्ती घुसाता चला गया।

“चीखो मत साली कुतिया। तुझे कुछ नहीं होगा मैडम। आराम से चोदने दे। देख मेरा पूरा लंड चला गया।” सरदार को मेरी चूत का स्वाद मिल गया था। “अहा, इतनी टाईट चूत? साली मजा आ गया। अब मजा आएगा चोदने में। तू मेरी कुतिया बनी रह, तुझे भी मजा आएगा।”

“नहीं प्लीज, कुछ मजा वजा नहीं, मेरी चूत का बाजा बजा दिया हाय रा्आ्आ्आ्आ्आम” मैं दर्द से बिलबिला रही थी।

“तू ऐसे नहीं मानेगी हरामजादी। पूरा लौड़ा अपनी चूत में खा कर रो रही है बुरचोदी। तेरी चूत देख कर तो कोई भी बता सकता है कि तू कितनी बड़ी चुदक्कड़ है। हां ये बात और है कि मेरा लौड़ा औरों से ज्यादा मोटा है, लेकिन देख, कितने आराम से चला गया तेरी चूत में। रो मत मैडम, तेरी टाईट चूत को मैं ने अपने लंड के हिसाब से बना दिया है। फटी नहीं है। तू इसी तरह कुतिया बनी रह, फिर देख कितना मजा आता है मेरे लौड़े से चुदवाने में,” कहते हुए धीरे धीरे कुछ देर अपने लिंग को अंदर बाहर करता रहा। एक दो मिनट में ही चमत्कारी रूप से मेरी चूत का दर्द कहाँ छू मंतर हो गया मुझे पता ही नहीं चला। मेरी कमीनी चुदासी चूत भी अपने हिसाब से फैल कर उसके लिंग को अपने अंदर ग्रहण कर ली। उसके बाद तो फिर मुझे भी मजा आने लगा।

“उफ्फ्फ आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह” दर्द भरे वे प्रारंभिक क्षण कब आनंद के क्षणों में तब्दील हो गए इसका मुझे पता ही नहीं चला और मेरे मुंह से आनंद भरी आहें उबलने लगीं।

“आ रहा है ना मजा अब? साली छिना्आ्आ्आ्आल, ओह्ह्ह्ह मेरी जान, ऐसी गजब की लौंडिया है तू। तेरी ऐसी मस्त चूत से पहले कभी पाला नहीं पड़ा। चूत के अंदर जैसे गरमागरम भट्ठी हो। ऐसा लग रहा है जैसे अपनी चूत से मेरा लौड़ा चूस रही है।” वह मुझे चोदता हुआ बोला। उसके घने बालों से भरा हुआ बदबूदार भीमकाय शरीर का संपर्क मेेेरे शरीर के अंदर की कामुकता को और भड़का रहा था। मेरे शरीर की सारी इन्द्रियाँ मानों तरंगित हो उठी हों। “आह मेरी जान, ओह मेरी रानी, खा मेरा लौड़ा साली लंडखोर” ज्यों ज्यों उसके चोदने की रफ्तार बढ़ती जा रही थी त्यों त्यों मैं मदहोश होती जा रही थी और अब मैं भी खुल कर अपनी गांड़ उछाल रही थी और कुतिया की तरह चुदी जा रही थी।

“वाह वाह, क्या नजारा है। साली बुरचोदी अब आई अपने रंग में। ठीक ऐसा लग रहा है मानो कोई भालू किसी बकरी को चोद रहा है फिर भी बकरी बड़े मजे से चुदवा रही है।” घासीराम हमारी चुदाई को देख कर मजा लेते हुए बोला।

“वाह साले तेजू, अकेले अकेले इतनी खूबसूरत लौंडिया को चोद रहे हो हरामियों”, एक अजनबी आवाज से मैं चौंक उठी। सर घुमा कर देखा तो सामने एक छरहरी काया वाला छ: फुटा आदमी खड़ा आंखें बड़ी बड़ी करके हमारी चुदाई देख रहा था। इधर सरदार उस आदमी के आगमन की परवाह किए बिना कुत्ते की तरह धकाधक चोदने में मशगूल था।

“आजा मां के लौड़े साहिल, तू भी आ जा, बड़ी किस्मत से आज ऐसी खूबसूरत लौंडिया हाथ लगी है। तू भी डुबकी लगा ले।” सरदार उस आगंतुक को आमंत्रित कर बैठा।

सरदार की चुदाई से निहाल, सुख की अथाह गहराई में डूबी पागल हुई जा रही थी मैं। किसी प्रकार का व्यवधान नहीं चाहती थी इन सुखद पलों में, “आह ओह उफ्फ्फ, चोद सरदार चोद, तू भी आ जा मादरचोद,” उस आगंतुक की ओर मुखातिब हो कर बोली, “आजा, तू भी मुझ कुतिया को चोद ले। साले घासी मादरचोद, ओह्ह्ह्ह हरामी, तू काहे खड़ा तमाशा देख रहा है बौने, तू भी आ जा। ओह मेरी मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, तुम तीनों मिल के मुझे रंडी बना दो, कुत्ती बना दो।” मैं बिल्कुल जंगली बन चुकी थी अबतक। फिर क्या था। वह साहिल नामक लंबा व्यक्ति भी आनन फानन नंगा हो गया। उफ्फ्फ, कितना खूबसूरत लिंग था उसका। सात इंच लंबे लिंग का चमड़ा विहीन गुलाबी सुपाड़ा चमचमा रहा था।

“हां री लौंडिया, आ गया मैं” कहते हुए वह कूद कर बिस्तर पर चढ़ गया और सीधे अपना लिंग मेरे मुंह के पास ले आया। “ले मेरा लौड़ा चूस।” कहते हुए साहिल ने अपना लिंग मेरे मुह में ठूस दिया। मैं मस्ती के आलम में किसी भूखी कुतिया की तरह साहिल के लिंग को चपाचप चूसने लगी।

“हां ओह आह चूस, अहा, कहां से मिली ऐसी मस्त चुदक्कड़ औरत भाई, यह तो गजब की छिना्आ्आ्आ्आल है उफ्फ्फ” साहिल खुशी के मारे बोल उठा। घासीराम भी अब बिस्तर पर आ चुका था। अब तीन खड़ूस चुदक्कड़ मेरे शरीर की तिक्का बोटी करने को पिल पड़े थे। सरदार अब मुझे अपने ऊपर ले कर खुद नीचे आ गया और नीचे से ही तूफानी रफ्तार से गचागच चोदने लगा। इधर बौना घासी मेरे पीछे आया और आव देखा न ताव, अपने लंड पर थूक लसेड़ कर मेरी गुदा की संकरी गुफा मेंं जबर्दस्ती घुसाता चला गया, “ले मेरा लवड़ा अपनी मस्त मस्त गांड़ में।”

“ओह्ह्ह्ह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ,” मैं एक पल के लिए तड़प उठी, किंतु अगले ही पल जब सटासट घासी का लंड अंदर बाहर होने लगा तो इधर मेरी चूत के अंदर सरदार के मोटे लिंग का घर्षण, उधर मेरी गुदा में बौने के लिंग का घर्षण, आनंद के सागर में गोते खाने लगी मैं और इन्हीं आनंद की रौ में मैं साहिल के लिंग को बेहताशा चपाचप चूसती चली गई। साहिल मेरे चूसने के इस अंदाज से निहाल हो उठा। वह मेरे सर को पकड़ कर अपनी कमर चला चला कर मेरे मुह को चोदने लगा और मै उसकी इस क्रिया में उसे और आनंद देने के लिए चूसना छोड़ कर अपने होठों से उसके लिंग को जकड़ कर होठों को ही चूत बना बैठी।

“ओह साली की होंठ है कि चूत, उफ्फ्फ अल्लाह, आह्ह्ह्ह्ह मजा आ रहा है वाह” साहिल खिल उठा मेरी इस अदा से। मैं गिनना भूल गई कि उन तीनों की सम्मिलित चुदाई के दौरान कितनी बार झड़ी। करीब पैंंतालीस मिनट तक तो सरदार नें ही चोदते चोदते मेरी चूत का भोसड़ा बना दिया। वह जब झड़ने लगा तो मुझे इतनी सख्ती से जकड़ा कि मानो मेरी सारी पसलियां कड़कड़ा उठी हों। उसके झड़ने के कुछ पलों पश्चात ही घासीराम भी फचफचा कर मेरी गुदा में ही अपने गरमागरम वीर्य का पिचकारी छोड़ने लगा। जैसे ही सरदार किसी जंगली भालू की तरह मुझे चोद कर हांफते हुए हटा, साहिल ने मोर्चा संभाल लिया। मेरे मुह से अपना लिंग निकाल कल सीधे मेरी चूत मे सट्ट से घुसा दिया। इधर घासी भी मेरी गुदा में अपना मदन रस सींच कर मैदान छोड़ चुका था। अब साहिल पूरी स्वतंत्रता के साथ मेरे शरीर से खिलवाड़ करने लगा। मेरी चूचियों को अपने विशाल पंजों से बीच बीच में भींचते हुए मुझे चीखने के लिए मजबूर करता करता। चोदने के अंतहीन ठापों से मुझे बेहाल कर दिया उसनें। झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। लंबे कद और छरहरे बदन का होने के साथ ही साथ काफी लचीला भी था वह। अलग अलग मुद्राओं में उलट पलट कर, तोड़ मरोड़ कर, मेरी चुदाई किए जा रहा था। उसके खतना किए हुए लिंग का भी असर रहा हो शायद, जो उसकी स्तंभन क्षमता इतनी अधिक थी। पानी पानी कर दिया था मुझे। घासीराम, फिर सरदार, और अब साहिल की अंतहीन चुदाई ने मुझे पूरी तरह निचोड़ कर रख दिया था कितनी बार झड़ती रही पता नहीं। बलराम, श्यामलाल के चक्कर में पड़कर मैं कहां से कहाँ पहुंच गई थी मैं। पूरी रंडी बन गई थी मैं उस रात।

“उफ्फ्फ मेरे चोदू, मार ही डालोगे क्या आज? आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ”, मैं अपनी पूरी कोशिश करती रही कि किसी तरह इस चुदक्कड़ जानवर की हवस पूरी करके निजात पाऊं। शायद उसके अल्लाह को मुझ पर तरस आ गया, अंततः, करीब एक घंटे की अथक चुदाई के पश्चात स्खलित हुआ वह कमीना। मैं पूरी तरह नुच चुद कर किसी बेजान गुड़िया की तरह बिस्तर पर फैल गई। वे तीनों मुझे चोदकर बेहद खुश हो रहे थे। मेरे बेजान पड़े शरीर के करीब आ कर पुनः मेरे अंग प्रत्यंग का दीदार कर रहे थे। अपनी किस्मत पर शायद उन्हें भी यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी खूबसूरत चिड़िया का शिकार किया था उन लोगों ने। उस वक्त रात का करीब बारह बज रहा था।

“चल घासीराम, एक एक ग्लास और दारू दे। इस मैडम को भी पिला। थोड़ी जान आ जाएगी इस मैडम के शरीर में भी। साली अभी इतनी रात को कहाँ जाएगी। सवेरा होने में अभी बहुत समय है। तबतक हमलोग और थोड़ी मस्ती करते हैं। ऐसी लौंडिया हमें मिलती कहाँ है।” सरदार मेरे शरीर को लार टपकाती नजरों से देखते हुए बोला।

“नहीं नहीं प्लीज, मर जाऊंगी मैं। बहुत हो गया, अब आज और नहीं।” कांप उठी थी मैं।

“अब तू कुछ न बोल रंडी। हमने देख ली तेरी हिम्मत और ताकत। चुपचाप यह दारू पी और हमारे साथ मस्ती करने के लिए तैयार हो जा। तेरे जैसी खूबसूरत चुदक्कड़ औरत हमें और कभी मिलेगी भी या नहीं पता नहीं। आज तो जिंदगी में पहली बार तू हमारी किस्मत से मिली है। ऐसे कैसे छोड़ दें।” सरदार बोला। मैं समझ गई कि आज बड़ी बुरी फंसी हूं मैं। छुटकारे का कोई और मार्ग नहीं था। फिर मन ही मन सोचने लगी कि चलो झेल ही लिया जाय। आखिर मैं भी एक नंबर की चुदक्कड़ जो ठहरी। वैसे भी कल रविवार है, पूरा दिन आराम ही तो करना है।

“ठीक है बाबा ठीक है, लाओ दारू लाओ हरामियों, थोड़ा मेरे बदन में भी जान आने दो, फिर चोदते रहना मादरचोदो। रंडी तो बना ही दिया साले कमीनो, अब जब चुदना ही है तो खुल के क्यों न चुदूं।” मैं खुल कर एकदम रंडीपन पर उतर आई। घर में हरिया को फोन कर दिया कि रात को मैं नहीं आऊंगी, मैं आवश्यक कार्य में व्यस्त हूँ। तीनों कमीनों की बांछें खिल उठी। उसके बाद उस कमरे में वासना का जो नंगा नाच हुआ, वह सवेरे तक चलता रहा। मुझे चलने फिरने तक भी नहीं छोडा़ कुत्तों ने।

“वाह मैडम, दिल खुश कर दिया आपने, वरना आप जैसी खूबसूरत औरतें हमें तो घास तक नहीं डालतींं। यहां की जवान बूढ़ी गरीब मजदूर औरतों से काम चलाना पड़ता है। आपकी दरियादिली का तहे दिल से शुक्रिया।” मुझे छोड़ते वक्त साहिल बोला। उसकी बातों से ऐसा लग रहा था मानो मैंने उन पर बड़ा उपकार किया हो। बेचारगी भी झलक रही थी उसकी बातों में।

“अरे शुक्रिया मत बोल कमीने, सिर्फ तुमलोग ही मजे नहीं लिए हो, मैं भी तुम लोगों के साथ साथ खूब मजा ली हूं। गजब के चुदक्कड़ हो तुमलोग। आती रहूंगी बीच बीच में, और हो सका तो मेरे जैसी और भी औरतें, जिनके पति उन्हें खुश नहीं कर सकते, वैसी औरतें तुम्हारे पास भेज दिया करूंगी,” उनके चेहरों पर बेचारगी और मौन निवेदन को पढ़ कर अपनी दुर्दशा के बावजूद मैं बोली, वैसे भी मैं भी तो पूरी रात उनके साथ पूरी मस्ती करती हुई आनंद का उपभोग करती रही थी।

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