कामिनी की कामुक गाथा (भाग 42)

Posted on

पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि मेरे नादान पुत्र क्षितिज का मुझपर बालसुलभ आकर्षण उसके जवान होते न होते मेरी खूबसूरती के प्रति विपरीत लिंग के आकर्षण में बदल चुका था। मेरी खूबसूरती पर इस कदर आसक्त था कि मुझे छोड़ कर उसे किसी और नारी में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी। हमारे बीच मां बेटे का संबंध दोस्ती में बदला, फिर घनिष्ठता बढ़ते बढ़ते अंतरंग संबंध में परिणत हो गया। उसकी नादानी भरी कामुक हरकतों और मेरी बमुश्किल, सड़े सब्र से दबाई गई कामवासना की ज्वाला के भड़क उठने के परिणाम स्वरूप हमने मां बेटे के तथाकथित पवित्र रिश्ते को शर्मसार करते हुए सारी तथाकथित मर्यादा को छिन्न भिन्न कर बैठे और हमारे बीच नर नारी के बीच का दैहिक संबंध स्थापित हो गया। एक बार वासना का वह बांध टूटा तो उसके तीव्र सैलाब में बहते गये और रात भर हम कामुकता का वह खेल खेलते रहे जो हमारे तथाकथित सभ्य समाज में वर्जित है। उस नादान बेटे को तो मानो खुशी का खजाना नसीब हो गया। रात भर मेरी नग्न देह रौंदता रहा। सुबह तक आनंद के सागर में डूबते उतराते, थक कर चूर, लस्त पस्त हो गये। सुबह घड़ी पर मेरी नजर ज्यों ही पड़ी मैं घबरा उठी। आठ बज रहे थे। मैंने अस्त व्यस्त हालत में ही क्षितिज को उठाया और धकेल कर जबर्दस्ती कमरे से बाहर निकाला। जब तक मेरी नजरों से ओझल नहीं हुआ, मेरा हृदय बेहताशा धड़कता रहा कि कहीं हमारी करतूतों का भांडा न फूट जाए। उसके जाते ही मैं तुरंत ही खुद का हुलिया दुरुस्त करने लगी। इस दौरान मेरे मन में कई तरह की बातें चल रही थीं। अपने बेटे के साथ हुए शारीरक संबंध की मेरे मन में कोई ग्लानि नहीं थी। इसके विपरीत मैं काफी प्रफुल्लित महसूस कर रही थी। मेरा मन बड़ा प्रसन्न था। मेरे बेटे की खुशी देख कर मैं समझ सकती थी कि मैंने उसे क्या उपहार दे दिया है। आज के इस युग में, इस उम्र में, जबकि कोई भी युवक युवती शायद ही नारी पुरुष के शारीरक संबंध से अनभिज्ञ रहता हो (भले ही उन्होंने इस संबंध का अनुभव नहीं किया हो), एक मुझ जैसी कामुकता की भट्ठी में धधकती औरत का बेटा कैसे अपवाद रह गया था, इस बात का आश्चर्य था मुझे। अब जा कर उसने इस संबंध के बारे में जाना और जाना भी तो किससे? खुद अपनी मां से और वह भी किस तरह? अपनी खुद की मां के साथ यौनाचार कर के। बेचारा बच्चा। उसे तो पता भी नहीं था कि जिस मां के चेहरे की खूबसूरती, जिस मां की खूबसूरत काया पर फिदा होकर स्त्री संसर्ग के प्रथम आनंद का परिचय पाया था, वह कितनी बड़ी खेली खाई छिनाल है। शुरू से ही उसके मन में अगर किसी नारी के प्रति आकर्षण था तो वह मैं ही थी, इस बात को मैं बखूबी जानती थी। एक मां के लिए एक बेटे का प्यार धीरे धीरे विपरीत सेक्स के बीच के आकर्षण में बदलता गया इस बात को मैं समझ रही थी, इसलिए मैं चाहती थी कि किसी प्रकार उसकी रुचि अपनी हम उम्र लड़कियों में हो। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि उसकी नजरों में दुनिया की एकमात्र खूबसूरत नारी मैं ही थी। हमेशा दूसरी लड़कियों से मेरी तुलना किया करता था वह पगला, जिसमें हर लड़की मेरे मुकाबले उन्नीस ही लगती थी। पहले मैं मां थी उसकी, फिर दोस्त बनी, फिर गर्लफ्रैंड बनी और अंततः उसकी अंकशायिनी बन गई।

अब जो हो गया सो हो गया, जो भी हुआ मेरी नजर में कुछ खास बुरा भी नहीं हुआ, सब कुछ बड़ा ही आनंददायक था। अपने जवान बेटे के नंगे तन से अपनी नंगी देह का संपर्क होने देना, खुद की नग्न देह को अपने जवान बेटे के नंगे जिस्म के सम्मुख परोस देना और उसे अपने यौनांगों से खेलने देना, उसे अपनी प्यासी यौन गुहा में गोते लगाने देना, सब कुछ कितना रोमांचक था, कितना अभूतपूर्व था, कितना अनिर्वचनीय था, यह कोई मुझ जैसी वासना के दलदल में धंसी बेहया छिनाल मर्दखोर से पूछे, जो अपनी अदम्य कामपिपासा के वशीभूत न जाने अबतक कितने मर्दों के बिस्तर गरम कर चुकी थी। सच में, यह बताने की नहीं बल्कि खुद से करके महसूस करने की, अनुभव करने की चीज है जिसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। अब आगे मुझे इस रिश्ते के कारण आने वाली दुश्चिंताओं के झंझावत से मुक्त होने का मार्ग तलाश करना था। पहली और प्रमुख दुश्चिंता यह थी कि जिस पागलपन की हद तक क्षितिज मुझ पर आसक्त था, कहीं यह उसकी पढ़ाई और उसके कैरियर बनाने के मार्ग में रोड़ा न बन जाए। दूसरी दुश्चिंता यह थी कि हमारे इस रिश्ते की भनक किसी और को कहीं लग न जाए। अगर हरिया, करीम जैसे घर के लोगों को पता चल भी जाए तो मुझे कोई खास परेशानी नहीं थी, किंतु यदि किसी बाहरी व्यक्ति को हम मां बेटे के इस (तथाकथित) अनैतिक रिश्ते के बारे में पता चल गया तो “तथाकथित सभ्य समाज” में जिस छीछालेदरी का सामना करना पड़ेगा उसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी। सर उठा कर जीना दुश्वार हो जाता हमारा।

खैर अब आगे मुझे काफी सावधानी और बुद्धिमानी से इन समस्याओं का समाधान निकालना था।

“क्या हुआ बेटी? (मुझे बेटी ही कहते थे क्षितिज के सामने हरिया और करीम) तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है क्या?” मेरी थकान से शिथिल शरीर, बुझी बुझी सूरत और अनिद्रा के कारण लाल लाल आंखें देख कर नाश्ते की टेबल पर हरिया ने टोका।

“कुछ नहीं चाचा जी (मैं भी उन्हें चाचा ही कहती थी उनको, भले ही मुझ नादान बाला के कमसिन तन को भोग भोग कर, खींच तान कर असमय ही छिनाल औरतों की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया था हवस के इन पुजारियों ने), बस यूं ही, रात को ठीक से नींद नहीं आई थी ना, इसलिए।” मैं ने जवाब दिया।

“ओके मॉम, नाश्ता करके आप कुछ देर सो लीजिए, फिर हम आज शॉपिंग के लिए चलेंगे, फिर आईलेक्स में मूवी देख कर आएंगे।” अबतक सर झुकाए चुपचाप नाश्ता करता हुआ क्षितिज बोला।

आगे की घटना अगली कड़ी में।

तबतक के लिए आप लोगों की इस कामुक लेखिका रजनी को आज्ञा दीजिए

This story कामिनी की कामुक गाथा (भाग 42) appeared first on new sex story dot com