पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि किस तरह रेखा की ननद रश्मि हमारे परिवार के अंदर रिश्ते नातों के बंधन से मुक्त सेक्स के बारे में जानकर खुद भी खुलकर अपने और अपने भाई के मध्य अनैतिक रिश्ते के बारे में बताने की हिम्मत जुटा पाई। उसे यह सुनकर बेहद आश्चर्य हुआ था कि मेरे और मेरे पुत्र क्षितिज के बीच शारीरिक संबंध है। वह तो यह देखकर भी अचंभित थी कि एक बूढ़े नौकर से संभोगरत अपनी मां के सम्मुख ही उसका पुत्र एक बाहरी स्त्री के साथ संभोग करते हुए कोई शर्म महसूस नहीं कर रहा था। जैसी बेशरम मां, वैसा ही बेशरम बेटा।
हम सब रश्मि की कहानी, मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे। इतना बता कर रश्मि ने जैसे ही विराम लिया, कुछ देर सन्नाटा छा गया। हम सब अपलक दृष्टि से रश्मि को देखते रह गये।। फिर मैंने ही सन्नाटे को भंग किया, “ओह, तो इस तरह तेरे भाई ने ही तेरा शील भंग किया, जिस तरह मेरे बड़े दादाजी ने मेरा।”
“हां।” रश्मि बोली।
“तूने बताया कि उसके बाद यह सिलसिला चल निकला।”
“हां।”
“तुझे इस बात का मलाल तो जरूर होता होगा।”
“न, बिल्कुल नहीं। क्यों होगा दुख? हां, शुरुआत में उन्होंने मेरे साथ थोड़ी जबर्दस्ती अवश्य की, लेकिन आनंद भी तो दिया। उन्होंने ही तो मुझे औरत मर्द के बीच शारीरिक संबंध के आनंद से परिचित कराया, मुझ नादान बेवकूफ को तो पता ही नहीं था कि इस खेल में इतना आनंद मिलता है, फिर दुख क्यों होता भला, बल्कि इसके विपरीत मैं तो आभारी हूँ अपने भाई का।”
“वाह, ये हुई न औरतों वाली बात। उसके बाद यह सिलसिला कब तक चलता रहा? तेरी शादी तक?”
“शादी तक? अब तक।” वह अब सबके सामने खुल गयी थी।
“वाऊ रश्मि। फिर तुमने दूसरे पुरुषों को मौका दिया कि नहीं?”
“नहीं, आज तक तो नहीं। सिर्फ मेरा भाई और मेरा पति। पति से तलाक के बाद मैं अकेली रहती हूं। मेरे अकेलेपन का साथी मेरा डिल्डो है। कभी छुट्टियों में मैं भाई के यहां चली आती हूं या भाई मेरे यहां चले आते हैं अपनी शारीरिक भूख मिटाने। रेखा भाभी बेचारी को तो हमारे इस संबंध की भनक तक नहीं है। ” बेझिझक बोलती जा रही थी, इस बात से बेखबर कि मेरे बूढ़े आशिक हरिया और करीम भूखे भेड़ियों की तरह इस खूबसूरत शिकार को नोच खाने को बेताब हो रहे थे।
“ओह, पहले भैय्या बना सैंया, फिर सैंया से तलाक, फिर भैया बना सैंया। बस? भैया न हुआ तो डिल्डो। क्या रश्मि तुम भी ना, तुझ जैसी खूबसूरत औरत को मर्दों की कमी है क्या जो इस बेजान डिल्डो से काम चला रही है?”
“ऐसी बात नहीं है। दरअसल मर्दों के चेहरों पर तो लिखा नहीं है न कि कौन किस तरह का है? पता नहीं दूसरे मर्दों के चक्कर में कहीं गलत हाथों में पड़ गयी तो जिंदगी बर्बाद नहीं हो जाएगी क्या?”
“तुम्हारी बात सही है, लेकिन अगर खुद पर आत्मविश्वास हो, हिम्मत हो और चतुराई हो तो सब संभव है। अब मुझी को देख लो। किसी की मजाल नहीं कि कोई मेरी मर्जी के बगैर मुझे हाथ भी लगा सके। एक सरदार ने मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश की तो उसकी मैंने वो हालत की कि उसकी नानी याद आ गयी।”
“सब तेरी तरह थोड़ी न हैं।”
“हां, यह तो है। सब मेरी मॉम की तरह लक्ष्मीबाई तो हो नहीं सकती।” अबतक चुपचाप सुनता रहा क्षितिज बोल उठा।
“सही बोला बच्चे, हमने देखी है तेरी मां का रणचंडी रूप।” हरिया और करीम ने क्षितिज का समर्थन किया।
“बस बस बहुत हुआ तुमलोगों की मस्कामारी।” मैं बोल पड़ी। फिर रश्मि से बोली, “तो इसका मतलब हुआ कि तुम्हारी जिंदगी में क्षितिज तीसरा मर्द है।”
“हां, तीसरा मर्द और भई वाह क्या खूब मर्द।”
“अभी तुमने सिर्फ क्षितिज को ही देखा है ना। जरा हमें भी मौका दे कर देख बिटिया।” करीम इतनी देर से चुपचाप सुन रहा था, फौरन बोल पड़ा।
“साले हरामियों, खूबसूरत औरत देखी नहीं कि शुरू हो गये।” मैं उन्हें डांटती हुई बोली।
“अरे इन्हें क्यों डांटती हो। गलत क्या बोले करीम चाचा। अपने दिल की बात बोले हैं, क्या करें बेचारे।”
“बेचारे? तू अभी क्या जानती है इनके बारे में?”
“जानना क्या है? मर्द हैं, वह भी ऐसे परिवार के, जहाँ यह सब कुछ चलता है।” रश्मि बोली।
“एक नंबर के औरतखोर हैं।”
“हां, मुझे सुनकर आश्चर्य नहीं हुआ।”
“तुम मुसीबत को आमंत्रण दे रही हो।” मैंने चेतावनी दी।
“कैसी मुसीबत?”
“तू उंगली पकड़ने तो दे, फिर देख।”
“क्या देखूं और। इस परिवार के सदस्यों के बीच आपलोगों के खुले संबंधों से तो वाकिफ हो ही गयी हूं। समझती हूं सब कुछ।” रश्मि बोल उठी। इतनी देर की बातचीत में हम सबके अंदर पुनः कामुक कामनाएं सर उठा रही थीं और उसकी अभिव्यक्ति करीम चाचा और रश्मि की बातों में झलक रही थीं।
“ओह तो यह बात है, बहुत खूब। सच कहा तुमने हम सब ऐसे ही हैं। आपसी संबंधों में कोई लाग लपेट नहीं। ढंका छुपा कुछ नहीं। हमारे बीच जो शारीरिक संबंध है, उसमें शारीरिक भूख मिटाने की ललक के साथ ही साथ एक भावनात्मक जुड़ाव है, हम सब एक दूसरे की भावनाओं की, इच्छा आकांक्षाओं की कद्र करते है। भावनात्मक लगाव है लेकिन कोई बंधन नहीं है। हम सब स्वतंत्र हैं, अपनी मर्जी के मालिक। हम अपने अंदर की बात छुपाते नहीं। मुझे खुशी हुई हमारे बारे में तुम्हारे विचार जान कर।”
“हां यह मेरे दिल की गहराई से कहे गये इमानदार उद्गार हैं और यह निश्चय ही प्रशंसनीय है।”
“तो हम इसका मतलब क्या समझें?” करीम उतावला हो रहा था।
“क्या मतलब?” रश्मि जानबूझकर अनजान बनते हुए बोली।
“वही जो अभी अभी मैं कह रहा था।”
“क्या कह रहे थे?”
“हमें भी मौका देने की बात।” बेसब्र बुड्ढा, साला हरामी बेटीचोद। इतनी खूबसूरत औरत पास में बैठी खुले सेक्स पर खुल कर विचार दे रही थी और प्रशंसा कर रही थी, सुनकर तो दोनों बूढ़ों की बांछें खिल रही थी। सब समझ रही थी मैं उनकी हालत, खड़ूस चूतखोरों के लंड निश्चित तौर पर सिर्फ सिग्नल का इंतजार कर रहे थे, उधर हां हुआ नहीं कि बस एकदम से हल्ला बोल वाली स्थिति थी। तनिक पशोपेश में थी रश्मि, क्या हां बोलूं? क्या इन बूढ़ों से भी चुद कर देख लूं? इतनी देर में जिस तरह की बातें हो रही थीं, तन में वासना की आग तो सुलग ही चुकी थी। वैसे भी वह देख चुकी थी हरिया ने किस मर्दानगी का परिचय दिया था मुझे चोदते हुए। बूढ़े का दम देख चुकी थी। दमदार बूढ़ा। करीम को देखकर साफ साफ पता चल रहा था कि वह भी हरिया से किसी भी मायने में कम नहीं है। करीम के साथ साथ हरिया भी कितनी आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा था। दोनों के दोनों की भूखी नजरें रश्मि के खूबसूरत देह पर टिकी हुई थीं। मैं और क्षितिज भी रश्मि के उत्तर की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। क्षितिज को चिंता नहीं थी कि रश्मि का उत्तर क्या होगा। अगर सहमत हुई बूढ़ों से चुदने के लिए, तो मैं तो थी ही उसकी चुदासी कामुक मां, अनुभवी, मस्त, चुदने हेतु सुलभ, उसकी अदम्य कामपिपाशा को बखूबी शांत करने में पूर्णतया सक्षम। और अगर ना हुई तो रश्मि की कमनीय देह का रसास्वादन करने का एक और अवसर मिलना तय था। मेरी हालत भी ठीक वैसी ही थी। उत्तेजित, चुदने को बेताब, लंड चाहे किसी का भी हो, बूूढ़ों का या जवान क्षितिज का।
“हां।” सन्नाटे को भंग करती हुई रश्मि की सहमति थी।
“वाह।” करीम तुरंत बोल उठा।
“यह हुई बात।” हरिया खुशी के मारे उछल पड़ा।
“दोनों?” रश्मि अकचका उठी।
“हां दोनों।” दोनों एकसाथ बोल उठे।
“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, एक ही जन।” रश्मि हड़बड़ा उठी।
“नहीं, दोनों।” हरिया बोला।
“हां हां दोनों।” करीम बोला।
“यह क्या्आ्आ्आ्आ? प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज एक जन।”
“नहीं, दोनों। वह भी एक साथ।” हरिया बोला।
“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, एक साथ नहीं।” तनिक घबरा उठी थी रश्मि।
“हम दोनों एक साथ खाना पसंद करते हैं।”
“नहीं प्लीज, एक एक करके।”
“हम दोनों साथ रहते हैं तो एक साथ ही करते हैं।” करीम बोला।
“पर मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।”
“पहले नहीं हुआ तो अब होगा।” वहशियाना अंदाज में बोला हरिया।
“कैसे?” घबराहट स्पष्ट दिख रहा था रश्मि के चेहरे पर।
“ऐसे।” दोनों बूढ़े टूट पड़े रश्मि पर।
“हाय राम, प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज छोड़िए मुझे।” उनकी सम्मिलित पकड़ से छटपटाती रश्मि घिघिया उठी।
“हाथ आई चिडिय़ा को ऐसे कैसे छोड़ दें रानी। हां बोली न।” करीम उसकी चूचियों को दबोच कर बोला।
“प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज ऐसे नहीं।” रश्मि उनके चंगुल में फड़फड़ा उठी।
“ऐसे नहीं तो और कैसे? ऐसे?” हरिया उसे चूमता हुआ बोला। दोनों के बीच रश्मि पिस रही थी।
“हाय मैं कहां फंस गयी।” रश्मि बेबस थी।
“फंसी नहीं पगली, स्वर्णिम अवसर मिला तुम्हें।” मैं उसकी हालत पर मुस्कुराते हुए बोली।
“हाय, यह कैसा अवसर? मार डालेंगे ये बूढ़े।” रश्मि रोनी सी आवाज में बोली।
“मरोगी नहीं बेवकूफ, बड़ा मजा आएगा।”
“ये कैसा मजा हरामजादी।” चिढ़ गयी वह।
“ये ऐसे नहीं मानेगी। जो करना है करो हरामी बूढ़ों। जबरदस्ती करो। दिखा दो इसे अपनी मरदानगी, और वह मजा दो कि यह खुद बोले, चोदो राजा चोदो।” मैं खीझ कर बोली। चुदने को मैं खुद मरी जा रही थी और इधर यह ड्रामा।
“क्षितिज बेटा, आ अपनी मां से खेल। उस रश्मि की बच्ची को उसके हाल पर छोड़।”
“वाऊ मॉम, आया, लो आ गया तेरा चोदू बेटा।” कहते कहते पूर्णतया निर्वस्त्र हो गया, गर्व से सर उठाए, विशालकाय, अकड़े, फनफनाते लिंग का प्रदर्शन करते हुए मेरे करीब आया और आनन फानन मुझे भी निर्वस्त्र कर दिया, मादरजात।
“उफ्फ्फ्फ, इतनी बेताबी!”
“हां्हां्आं्आं्आं मॉम, बहुत देर से मेरा पपलू बेकरार था।” मेरी नग्न देह को अपनी बांहों में समेट कर मेरी भरी भरी उन्नत चूचियों को बेरहमी से दबाता हुआ चूमने लगा वह। अबतक हरिया और करीम ने रश्मि की ना ना और छटपटाहट को नजरअंदाज करते हुए नग्न करने में तनिक भी समय नहीं गंवाया। अब रश्मि पूर्ण रूप से नंगी, बेबस, उन दो कामपिपाशु बूढ़ों के हाथों मसली जा रही थी। एक एक करके हरिया और करीम भी निर्वस्त्र आदीमानव बन गये। दोनों के तनतनाए लिंग, विभिन्न आकार प्रकार और बनावट के बावजूद आकर्षक थे। लंबाई और मोटाई ताकरीबन एक ही थे किंतु करीम का खतना किया लिंग, टेनिस बॉल सरीखे गुलाबी सुपाड़े का बेपर्दा स्वरूप दिखा रहा था। दोनों कामुक बूढ़ों के भीमकाय, तोंदियल, सलवटों की तरह झुर्रियों और सफेद बालों से भरे शरीर के मध्य रश्मि की कमनीय देह का बेदर्द मर्दन, लोमहर्षक दृष्य प्रस्तुत कर रहा था। करीम उसके पीछे था, उसके मजबूत हाथ उसकी सख्त चूचियों को बेरहमी से मसलने में व्यस्त थे। हरिया सामने से उसके चेहरे को चुंबनों से नहलाए दे रहा था, उसका एक हाथ उसकी चिकनी चूत पर अठखेलियाँ कर रहा था।
“उफ्फ्फ्फ, ओह्ह्ह्ह्, ननननहींईंईंईंईं।” रश्मि की आंखें बंद हो रही थीं। उसकी योनि रसीली हो उठी थी।
“नहीं क्या, हां्हां्आं्आं्आं बोल हां।” हरिया बोला।
“ओ मां्मां्आ्आ्आ्आ।”
“मां नहीं, बाप बोल।”
“ओओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह बाबा।”
“हां्हां्आं्आं्आं बेटी।” हरिया अपनी उंगली रश्मि की चूत में डालने लगा।
“उई्ई्ई्ई्ई्ई बाबा।” चिहुँक उठी वह।
“उई क्या बिटिया? पनिया उठी न तेरी चूत? चल अब ले ले मेरा लौड़ा, बिटिया रानी।” बड़े प्यार से फुसला रहा था हरिया।
“ओह्ह्ह्ह् बाबा। हाय हाय।” वह अभी भी कसमसा रही थी उनकी बांहों में। चेहरा लाल हो गया था उसका। गैर मर्दों से चुदा जाना, वह भी एक मर्द से नहीं, दो दो मर्दों से, उसपर तुर्रा यह कि दोनों बूढ़े। बिल्कुल नयी बात थी उसके लिए। घबराहट थी, झिझक थी। अकेले किसी एक मर्द से ढंके छुपे तौर पर चुदना अलग बात थी, लेकिन इस तरह खुल्लमखुल्ला इतने लोगों के सामने बेशरमों की तरह इस तरह चुदे जाने की तो उसने शायद कल्पना भी नहीं की थी होगी। फंस तो चुकी ही थी, चुदा जाना तय था। तो क्या, तो क्या वह कामुकता के वशीभूत बेशर्म रंडी बनती जा रही थी? शायद, शायद नहीं, निश्चय ही। अबतक दोनों बूढ़े मिलकर उसे इस हाल में पहुंचा चुके थे जहाँ से वापस होना उसके वश में नहीं रह गया था। हरिया उसकी चिकनी चूत में उंगली डालकर रुका नहीं, दनादन उंगली से ही चोदने लगा। खेला खाया चुदक्कड़ बूढ़ा था, एक औरत को गरम करके कैसे वश में करना है, बखूबी जानता था।
“ओह्ह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह् आह्ह्ह्ह्ह् मां।” सीत्कार निकालने को वाध्य हो गयी वह। बेसाख्ता चिपकी जा रही थी उनके तन से। एक तरह से अपने विरोध और शर्म को तिलांजलि दे कर खुद को उन वहशी, कामुक दरिंदों के हवाले कर बैठी थी। उसे आभास भी नहीं था कि करीम का लिंग उसकी गुदा द्वार पर दस्तक देने ही वाला था। तभी “ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह, आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, गय्य्य्यी्ई्ई्ई्ई्ई रे अम्म्म्म्आ्आ्आ्आ्आ।” कहती हुई थरथराने लगी और उसका स्खलन आरंभ हो गया।
“अभी कहां गयी, अभी तो शुरु हुई।” कहते कहते उसने बड़ी चालाकी से उसके दोनों पैरों को फैला कर अपने अनुकूल अवस्था में लाया और आव देखा न ताव, उससे छिपकली की तरह चिपकी रश्मि की चूत के मुहाने पर अपना मूसलाकार लंड टिका कर एक करारा प्रहार कर दिया और एक ही झटके में पूरा का पूरा लंड उसकी चिकनी चूत की संकरी गुफा को चीरता हुआ उतार दिया।
“आ्आ्आ्आ” घुटी घुटी चीख निकल गयी उसकी। दर्द से नहीं, शायद कल्पनातीत आक्रमण से। उम्मीद नहीं थी उसे कि एक बूढ़ा आदमी इस तरह एकदम से हमला करेगा और अपने जोश का प्रदर्शन करेगा। उत्तेजित जरूर थी वह किंतु ऐसे भीषण प्रहार की उम्मीद नहीं थी उसे। तनिक पीड़ा तो होनी ही थी, पूरा जड़ तक एक ही प्रहार से अपना लंड जो उतार दिया था उस हवस के पुजारी नें। अपनी मजबूत भुजाओं से जकड़े, अपने भीमकाय लंड को उसकी चूत में फंसाए हरिया ने उसे उठा लिया हवा में। गजब की ताकत थी अब भी उस चुदक्कड़ बूढ़े में। करीम न जाने कब से इस मौके की तलाश में था। पीछे से आकर पुनः उसने रश्मि को दबोच लिया, इस बार पूरी तैयारी के साथ, अपने लिंग में थूक लसेड़े, उसकी मस्त गुदाज गांड़ के दरवाजे में अपने लंड ठोकने को। रश्मि की ललचाती गुदा के द्वार पर अपने लिंग का चमचमाता विशाल सुपाड़ा ज्यों ही सटाया, चिहुंक उठी रश्मि। घबरा ही तो गयी। समझ गयी उसका इरादा।
“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, पीछे से नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, पपप्ल्ल्ली्ई्ई्ई्ईज्ज्ज।” चीख उठी घबराहट में। लेकिन करीम कम खेला खाया खिलाड़ी नहीं था। उसकी सख्त चूचियों को अपने मजबूत पंजों से दबोच कर एक करारा धक्का जो मारा, आधा लंड अंदर पैबस्त हो गया। “आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह मर्र्र्र्र्र्र्र गय्य्य्यी्ई्ई्ई्ई्ई अम्म्म्म्आ्आ्आ्आ्आ।” पीड़ा के अतिरेक से चीख उबल पड़ी उसके मुंह से। आंखें फटी की फटी रह गयीं उसकी।
“चिल्ला, खूब चिल्ला, इतनी मस्त गांड़ का मजा जब तक न ले लूं, तबतक चिल्ला, मैं छोड़ने वाला नहीं हूं मां की लौड़ी।” कसाई बन चुका था वह, एक और करारा प्रहार, “हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्,” और लो, पूरा का पूरा लंड उसकी गांड़ के अंदर।
“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, छोड़ मादरचोद, ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह, फा्आ्आ्आ्आड़ दिया आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” दर्दनाक चीख से गूंज उठा पूरा कमरा।
“हो गया काम। बस मेरी गांड़मरानी, हो गया तेरी गांड़ का काम। अब बस तू मजे में चुदती रह, हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्, हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्,
हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्,
हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्” दनादन तीन चार बार अंदर बाहर हुमच हुमच के अपने लंड को करके बेरहमी से उसकी गांड़ को फैला कर सुगम मार्ग बना दिया।
“आह मां ओह मां्मां्आ्आ्आ्आ इस्स्स्स्स्स इस्स्स्स्स्स, हा्हा्हा्आ्आ्आ्आ्य हा्हा्हा्आ्आ्आ्आ्य,” चीखती चीखती धीरे धीरे शांत पड़ गयी वह। अब शुरू हुई उसकी चूत और गांड़ की सम्मिलित कुटाई। दोनों बूढ़े रश्मि की नग्न देह को हवा में उछाल उछाल कर किसी डबल सिलेंडर इंजन की तरह अपने लंड रुपी पिस्टन से कूटते रहे, उसकी चूत और गांड़ का मलीदा बनाते रहे। जो रश्मि कुछ देर पहले तक दहशत में भर कर पीड़ामय चीखें निकाल रही थी, वही रश्मि अब आनंदभरी सिसकारियां निकाल रही थी, “आह आह आह ओह ओह ओह इतना मजा ओह रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आ, चो्ओ्ओ्ओ्ओदि्ई
ईःई्ई्ए्ए्ए्ए्ए ओह ओह।” बेसाख्ता चिपकी जा रही थी, पिसती जा रही थी उन चुदक्कड़ भेड़ियों के मध्य और आंखें बंद किए आनंद के सागर में गोते खा रही थी। इधर क्षितिज कहां पीछे रहने वाला था। इसी दौरान उसने मुझे भी अपने लंड का जलवा दिखाना आरंभ कर दिया था। मुझे कमर से पकड़ कर उठाया और भच्चाक से अपने फुंफकार मारते लंड में ऐसा बैठाया कि उसका लंड सीधे मेरी चूत में जड़ तक समा गया। उसने भी खड़े खड़े मुझे हवा में उठा लिया और गचागच चोदते हुए हवा में ही झूला झुलाने लगा। उफ्फ्फ्फ, यह उन बूढ़ों और रश्मि के बीच की कामकेली का ही असर था शायद, क्षितिज पूरे जोश में था। उत्तेजना के मारे उसके लंड का आकार भी पहले से विकराल और खुंखार हो उठा था। मैं, मैं तो निहाल हो उठी, उसकी गोद में चिपकी चुदी जा रही थी, चुदी जा रही थी, मस्ती की तरंगें मेरे तन में हिलोरें मार रही थीं।
“मेरी प्यारी मॉम।”
“मेरे प्यारे चोदू बेटे।”
“मेरी बुरचोदी मॉम।”
“मेरे प्यारे मादरचोद।”
“ओह मेरी रंडी मॉम।”
“ओह मेरे चूत के रसिया, चोद, चोद मां के लौड़े।”
“ओह मेरी चूतमरानी मां, मेरे लंड की रानी।” इन्हीं उद्गारों के साथ हम मां बेटे जुटे हुए थे एक दूसरे के तन में समा जाने की जद्दोजहद में। यह दौर अन्य दिनों के बनिस्बत कुछ अधिक ही चला। क्या हो गया था हम सभी को उस वक्त, समझ नहीं आ रहा था। हम सभी पागलों की तरह एक दूसरे से गुथे जा रहे थे। जहां रश्मि के गालों और गर्दन पर हरिया अपने दांतों का निशान छोड़ता जा रहा था वहीं करीम उसकी चूचियों का मलीदा बनाता जा रहा था। अखाड़ा बन चुका था वह कमरा। कभी उठा कर, कभी लिटा कर, कभी कुतिया बना कर, धमाधम, गचागच, घमासान धकमपेल मचाए हुए थे तीनों मर्द। आह ओह हाय हाय इस्स्स्स्स्स उस्स्स्स् हुम हुम की आवाज के साथ साथ फच फच चट चट की सम्मिलित आवाज से पूरा कमरा गुंजायमान था। वासना का सैलाब आया हुआ था जो करीब एक घंटे तक निरंतर बहता रहा। फिर शुरू हुआ एक एक करके मर्दों का स्खलन, अंतहीन स्खलन। इस दौरान मैं तो तीन बार झड़ चुकी थी, वहीं रश्मि का तो पता नहीं। कितनी बार उसके झड़ने का आभास उसकी आहों से हमें होता रहा। सर्वप्रथम हरिया नें अपने वीर्य से रश्मि की चूत को सराबोर किया फिर करीम ने अपना मदन रस उसकी गांड़ के अंदर भरना चालू किया। इस दौरान उन्होंने रश्मि की नग्न देह को इस सख्ती से दबोचा था मानो उसकी पसलियों का चूरमा बना कर ही दम लेंगे, मगर वाह री बुरचोदी रश्मि, कमाल थी, मगन थी, मस्ती में डूबी हुई, आंखें बंद किए सिसकारियां निकाल रही थी। इधर क्षितिज मेरे तन का सारा कस बल निचोड़े जा रहा था। अंततः जब उसने भी अपने लंड का फौव्वारा मेरी चूत में छोड़ा, आह, मैं तो निहाल हो उठी। मर्द, जबरदस्त मर्द, मुकम्मल सांढ़ बन चुका था वह।अपने मदन रस का पान कराता मुझे इतनी जोर से जकड़ा मानो मेरी सांसें ही रुक गयी हों। कड़कड़ा उठी मेरी पसलियां और मैं उसके सुगठित तन से चिपकी आनंदित होती रही।
“ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आ।”
“हां्हां्आं्आं्आं रानी।”
“गयी रे गयी मैं, झड़ी रे झड़ी मैं।”
“ले मम्मी मेरे लंड का रस्स्स्स्स्, अपनी दूध का कर्ज। आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” और फिर हम सब पसीने से लतपत, संतुष्ट, निढाल पड़ कर लंबी लंबी सांसें ले रहे थे।
जब हम थोड़े संभले, मेरा पहला सवाल रश्मि से, “कैसा रहा?”
“ओह्ह्ह्ह् कामिनी, पूछ मत।”
“कैसा लगा?”
“गजब, ऐसी हालत कर दी मेरी इन बूढ़े जालिमों ने कि पूछो मत।”
“मजा आया?”
“बहूऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊत।” कहते हुए शरमा गयी बेचारी।
“हाय मेरी लाजो रानी। शरमा तो ऐसे रही है जैसे पहली बार चुदी है।”
“हां तो। पहली बार ही तो इन बूढ़ों से, वह भी एक साथ।” लाल भभूका हो उठी।
“और तुम बूढ़े चुदकड़ो?”
“बूढ़ा बोलती है बुरचोदी, रश्मि बिटिया से पूछ मां की लौड़ी।” हरिया बोला।
“उससे तो पूछ लिया, अपनी बता चूतखोरों।”
“वाह, यह भी पूछने की बात है री रंडी। ऐसी मस्त लौंडिया को चोदना किस्मत की बात है। मन ही नहीं भरा। देख फिर से मेरा लौड़ा सर उठाने लगा।” करीम बोला।
“तो देख क्या रहे हो कुत्तों, शुरु हो जाओ फिर से।”
“ना बाबा ना। अभी और नहीं। हालत खराब कर दिया इन हरामियों ने।” थकी थकी सी रश्मि बोली।
“ओके ओके, अभी का हो गया। अब बेचारी को घर भी जाने दो। कल देखते हैं। वैसे भी अभी तो दो चार दिन यह रहेगी ही। हमारे लौड़े का मजा लेने फिर आना इसकी मजबूरी है। है कि नहीं रे बुरचोदी?” हरिया बोल उठा।
“हां्हां्आं्आं्आं बाबा हां्हां्आं्आं्आं। चस्का जो लगा दिया हरामियों।” बोलने को तो बोल गयी, फिर शरम से दोहरी हो उठी। अबतक सांझ का पांच बज चुका था। अब रश्मि को छोड़ आने के लिए मैं क्षितिज से बोली। हम सब अपने अपने कपड़े पहनने लगे। रश्मि खड़े होते होते लड़खड़ा रही थी। हंसी आ गयी मुझे।
“हंस रही है कुतिया। तेरे कुत्तों ने इतनी बुरी तरह नोचा खसोटा कि बदन का एक एक जोड़ ढीला कर दिया।” हम सभी ठठाकर हंस उठे। उसकी आवाज में सिर्फ थकान थी, झोभ या पश्चाताप नहीं। फिर क्षितिज उसे सिन्हा जी के घर छोड़ आया।
This story कामिनी की कामुक गाथा (भाग 58) appeared first on new sex story dot com