सावन के महीने में भैया बने सैयां : भाग २

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पिछले भाग से आगे… मैं रिमझिम अगले सुबह फ्रेश होकर चाय बनाई फिर सबके साथ बैठकर चाय पी ली लेकिन विवेक भैया मौजूद नहीं थे, वैसे भी देर रात तक वो मेरे बदन को संतुष्ट करते रहे और मैं आज दिन में मौके की तलाश में थी की कब अकेला पाकर विवेक भैया के साथ सेक्स कर लूं, मेरे पति तो अपने काम से १०:०० बजे निकल गए और फिर विवेक भैया जागते ही फ्रेश होकर नीचे आए तो मैं उनसे पूछी ” चाय पिएंगे
( वो गिद्ध दृष्टि से मेरे उभार को देखते हुए बोले ) हां थोड़ी कड़क चाय ” तो मैं स्नान ध्यान करके तैयार थी और उनके सामने से कमर मटकाते हुए किचन चली गई फिर चाय बनाकर ले आई, मैं आसमानी रंग की साड़ी, डिप नेक वाला ब्लाउज पहन रखी थी साथ ही पूरे सज संवर कर थी मानो किसी पार्टी में जाना है और उन्हें झुककर चाय का प्याला दी तो भले ही साड़ी की पल्लू ब्लाउज से पिन के सहारे लगी हो लेकिन आगे की ओर झुकते ही बूब्स का दिखना स्वाभाविक था और मैं प्याला देकर झट से सीधी खड़ी हो गई ” तुम अपने लिए चाय नहीं बनाई
( मैं ) नहीं अब नाश्ता करूंगी
( विवेक मुझे घूरने लगा ) पूरी तरह से तैयार हो कहीं घूमने जाना है क्या
( मैं बोली ) वो तो काम से चले गए बाकी आप यदि चाहें तो
( विवेक बोला ) ठीक है मुझे कुछ जरूरी काम है और इसी बहाने तुम्हें उधर घुमा भी दूंगा ” और तकरीबन ११:०० बजे दोनों घर से निकले तो भैया मुझे कार के पिछले सीट पर बैठने को बोले फिर कार स्टार्ट कर शहर के एक शॉपिंग मॉल के पास रुके और मैं देखी की वो तो वाईन शॉप पर खड़े हैं, लगता है विवेक भैया को भी शराब पीने की आदत है और वो उधर से एक पोलिबेग लेकर आए फिर कार में बैठे तो मैं पूछी ” विवेक आगे ही बैठ जाऊं
( वो मुड़कर बोला ) नही बस दस मिनट में हम दोनों साथ ही एक जगह घूम रहे होंगे ” फिर विवेक तेजी से वार चलाने लगा, मुझे शक हो रहा था की ये मुझे कोई निर्जन स्थान पर ले जा रहा है और कुछ देर बाद कार को एक जगह पर रोका तो मैं खिड़की से बाहर देखी तो लिखा था ” नौलक्खा मंदिर और गर्म कुंड ” , भैया कार से बाहर निकले फिर मैं भी निकली तो उनके हाथ में जो पोलीबेग था वो मुझे थमाए ” इसे अपने पर्स में रख लो
( मैं पर्स में रखी और दोनों साथ चलने लगे ) आप शराब पीते हो भैया
( विवेक मेरे हाथ थाम लिया ) भैया शब्द का प्रयोग सबके सामने वैसे हम दोनों का संबंध तो बदल गया ” दोनों कुछ दूर पैदल चले फिर मंदिर दिखा तो कुछ कपल्स बाहों में बाहें डाल घूम रहे थे, फिर दोनों मंदिर में प्रवेश के लिए एक जगह चप्पल खोले और सीढ़ी से ऊपर चढ़े, मंदिर में कुछ पल रहे फिर उसके बाहरी कलाकृति को देखते हुए एक जगह पर बैठे। मंदिर के पिछले हिस्से में दोनों बैठे थे तो विवेक मेरे उभार पर हाथ लगाया फिर चूची को दबाने लगा तो मैं उसके करीब खिसकी ” मंदिर में ये काम गलत है
( विवेक मेरे गर्दन में हाथ डालकर ओंठ पर चुम्बन देने लगा ) ये रासलीला करने वाले भगवान की मंदिर है, वैसे बहुत जल्द तुम्हें ऐसी जगह ले जाऊंगा जहां तुम खुद ही शुरू हो जाओगी ” और फिर वहां से दोनों उठे, फिर मंदिर से निकल गए तो विवेक मुझे मंदिर के प्रांगण में अंदर ले जाने लगा तो मुझे विवेक के नियत पर कोई शक नहीं था लेकिन प्रांगण में तो पेड़ की झुंडें थी तो उसने मेरा हाथ पकड़ लगभग १०० मीटर अंदर ले गया और फिर दोनों एक जगह पर बैठे।
विवेक मेरे पर्स से पोलिबेग निकाला तो मैं देखी की वो एक बियर की केन उसमें लिया था जिसे खोल पीना शुरू किया साथ ही पैंट के पॉकेट से सिगरेट की पैकेट निकाल सिगरेट सुलगाया फिर फूंकने लगा और मुझे देख बोला ” यहां पर बहुत मजा आएगा, प्रेमी जोड़े इधर ही काम क्रिया करते हैं ” मैं बिना कुछ बोले भैया के पैंट के जिप को खोली फिर उससे लन्ड बाहर की तो वो बियर पीकर केन को फेंके और झट से मेरे साड़ी के पल्लू को नीचे कर बूब्स दबाने लगे तो मैं इधर उधर देखी फिर भैया के लन्ड जोकि सुस्त पड़ा हुआ था को पकड़ हिलाने लगी और भैया तो दूसरे हाथ को मेरी पेटीकोट में घुसाए जांघ सहलाने लगे। मैं उनके सामने उनके करीब खिसकी तो भैया मेरे गर्दन में हाथ डाले ओंठ पर चुम्बन देने लगे फिर मेरे रसीले ओंठ मुंह में लिए चूसने लगे तो मैं उसके गोद में टांगे फैलाई बैठ गई और लन्ड तो मेरे नाभी से सट रही थी, तभी विवेक मेरे ओंठ छोड़कर गाल चूमने लगे तो मैं उनके चेहरे को चूमते हुए आखिर में जीभ निकाल उनके ओंठ को चाटने लगी, विवेक मेरे गांड़ को सहलाता हुआ जीभ मुंह में ले लिया फिर चूसने लगा तो उनसे लिपटे मेरी बूब्स छाती से रगड़ खा रही थी लेकिन जीभ चुसवाने में मुझे बियर का स्वाद मिल रहा था, कुछ देर तक विवेक जीभ चूसा फिर मुझे अलग कर बोला ” लन्ड को चाट साली तेरी गांड़ चोदूंगा
( मैं उनके गोद से उतरकर पास में बैठी फिर लन्ड पकड़ चूमने लगी ) उहुँ रात को गांड़ अभी बुर ” फिर मैं झुकी और भैया के लन्ड को मुंह में लिए चूसने लगी तो मेरी साड़ी सीने से नीचे हो चुकी थी साथ ही मैं घुटनों के बल थी तो मेरे गांड़ पर विवेक हाथ फेरते हुए मेरे ब्लाऊज के डोरी को खोल दिए और मेरी ब्लाउज को बाहों से निकाल ब्रा में ही चुचियों को रहने दिए, विवेक का हाथ मेरे कोमल चूची पर था तो उनकी हाथ मेरे पेटीकोट सहित साड़ी को कमर तक करने के लिए आतुर लेकिन साड़ी तो घुटनों के नीचे दबा हुआ था इसलिए वो ऐसा नहीं कर सके और मैं लन्ड को कुछ देर तक मुंह में रखी तो लन्ड टाईट हो गया फिर मैं लन्ड मुंह से निकाल सीधे बैठ गई और विवेक से पूछी ” यहां कोई आ गया तो हम दोनों का क्या हाल होगा
( विवेक मेरे बूब्स पर हाथ रख दबाते हुए बोला ) तुमको यहां नंगा करके चोदूंगा तो भी कुछ नहीं होगा, बस मेरा साथ दो यहां यही सब होता है ” तो मुझे थोड़ी तस्सली मिली फिर मैं झुककर भैया का लन्ड मुंह में लिए चूसने लगी साथ ही मुंह का झटका देते हुए मुखमैथुन करने लगी तो विवेक मेरे साड़ी सहित पेटीकोट को कमर तक करके गांड़ सहलाने लगा और मेरी बूब्स दबाते हुए आहें भर रहा था ” आह ओह उह बहुत बड़ी रांड़ है साली अब लन्ड छोड़
( मैं लन्ड को मुंह से निकाल जीभ से उसे चाटने लगी ) ओके विवेक ”
रिमझिम मंदिर के प्रांगण के आखिरी हिस्से में जिधर सिर्फ पेड़ों का झुंड था अपने घुटनों और कोहनी के बल थी तो विवेक झट से उठा फिर पैंट और चड्डी उतार निकला भाग को नग्न कर मेरी गांड़ की ओर जा बैठा, मेरे जांघो को फैलाया लेकिन मेरे छाती पर ब्रा थे तो कमर पर साड़ी सहित पेटीकोट ताकि कोई इधर आए तो मैं झट से साड़ी नीचे कर तन को ढक सकूं और अब विवेक मेरे गांड़ के दरार में जीभ फेरते हुए बुर को उंगली से कुरेदने लगा, मौसम में उमस भरी गर्मी थी फिर भी सेक्स के खातिर क्या रेगिस्तान या क्या वातानुकूलित कमरा, मैं पीछे मुड़कर बोली ” विवेक बुर में जीभ घुसाओ ना बहुत खुजली हो रही है ” विवेक मेरे गांड़ के दरार को चाटना छोड़ा फिर बुर को फैलाए चूतड की ओर से ही जीभ से चाटने लगा और मैं जांघें फैलाई चुदाई को तड़प रही थी ” उह आह ओह उई निकल गया ” और बुर से रस निकलने लगा तो विवेक उसे जीभ से चाटा फिर मैं उठ खड़ी हुई, अपने सीने को साड़ी से ढक ली और उससे कुछ दूर चली गई, पेड़ों की झुंड की वजह से सूर्य की रोशनी तक अच्छे से नहीं आ रही थी और मैं वहीं बैठकर मूतने लगी फिर वापस आई तो विवेक का टाईट लन्ड देख ओंठ पर जीभ फेरने लगी ” क्या बहुत गर्मी लग रही है
( मैं हंस दी ) हां फिर भी ऐसे जगह पर मजा आ रहा है ” तो विवेक अपना लन्ड पकड़े इशारे से मुझे उसके ऊपर बैठने को बोला और मैं साड़ी सहित पेटीकोट को कमर तक उठाए उसके लन्ड के ठीक ऊपर जांघो को फैलाए बैठी तो विवेक मेरे कमर को पकड़ लिया और मैं उसके लन्ड पकड़ बुर में घुसाई फिर तो खुद ही गोल गद्देदार गांड़ नीचे करते हुए लन्ड हजम कर रही थी तभी विवेक नीचे से धक्का दे मारा और मैं उससे चिपक कर चुदाने लगी। मैं साड़ी सहित पेटीकोट को नीचे कर दी ताकि मेरे चूतड को कोई नंगा देख ना सके और सामने से बुर में लन्ड लिए उसके कंधे पर हाथ रख चूतड को ऊपर नीचे करते हुए चुदाने लगी तो विवेक मेरे कमर पर हाथ लगाए धकाधक नीचे से चुदाई कर रहा था, मैं भैया के ओंठ चूम ली ” बहुत मजा आ रहा है डियर और तेज चोदो, अब तो हफ्ता भर रुककर तुझसे चुदाऊंगी ” में अपने चूतड को उछालते हुए लन्ड से चुदाई करवाने लगी तो भैया मेरे सीने पर से साड़ी हटाकर दे दनादन चोदते रहे और तीन चार मिनट तक चुदवाके मेरी बुर अग्नि कुंड हो गई तो मैं उनके लन्ड को बुर से निकाल दी फिर उठकर खड़ी हुई, विवेक का लन्ड मानों फुंफकार रहा था तो वो बोला ” तुम थोड़ा रेस्ट करो तब तक एक सिगरेट फूंकता हूं फिर डॉगी स्टाइल में ” मैं बैठकर पानी पीने लगी तो विवेक का लन्ड देख मेरे मुंह में पानी आ गया, मैं कुछ देर बैठी रही फिर उसके सामने डॉगी स्टाइल में हो गई तो विवेक मेरे साड़ी सहित पेटीकोट को कमर तक किया फिर मेरी चूतड को चूमने लगा और उसकी उंगली बुर को कुरेद रही थी, मैं चुदाई को तड़प रही थी तो विवेक मुझे गर्म करने में लगा हुआ था और फिर उंगली को निकाल बुर में थूक दिया, सुपाड़ा को बुर में घुसाया और धीरे से आधा लन्ड डालकर चोदना शुरू किया और मैं मस्त हो रही थी की अचानक ही पूरा लन्ड घुसाया ” उई मां फाड़ दिया अरे मादर चोद बुर तेरी मां की नही
( विवेक का लन्ड गपागप अंदर बाहर हो रहा था और वो बोला ) मां की बुर में क्या खास है उसे भी चोदकर मस्त कर दूंगा साली ” और मैं अपने चूतड को हिलाना शुरू की, मेरी बुर तो आग की भट्टी बन चुकी थी तो विवेक चोदता हुआ मेरे गर्दन को पकड़ा फिर मेरे शरीर को ही आगे पीछे करने लगा और तभी मेरी बुर से रस निकलने लगी तब भी विवेक अपना लौड़ा बुर में डाले रगड़ा देता रहा तो मुझे तो दिन में ही तारे दिखने लगे और मैं चूतड हिलाते हुए बोली ” विवेक अब और नहीं बुर का कचूमर निकाल दिए हो प्लीज झाड़ो ना
( विवेक चोदता हुआ बोला ) लन्ड की मर्जी तेरी बुर उसे पसंद आ गई ” और वो चोदता हुआ मेरे सीने से लगे चूची को भी दबाने लगा तो मैं चूतड हिलाते हुए वीर्य के इंतजार में मरे जा रही थी, कुछ पल बाद विवेक के चुदाई की गति बढ़ गई ” आह ओह ये ले साली रण्डी पीला अपनी बुर को ” और उसके लन्ड से चिपचिपा पदार्थ बुर में गिरने लगा, कुछ देर बाद लन्ड को बुर से निकाला तो मैं पानी से बुर को साफ की और भैया भी लन्ड साफ करके पैंट पहने तो मैं वहीं घांस पर कुछ देर तक आराम की फिर ब्लाउज पहनी और कपड़े ठीक कर बोली ” तो चला जाए मेरे भैया जोकि बन गए सैयां
( विवेक बोला ) हां तुझे पेट से करके ही वापस घर भेजूंगा ” फिर दोनों उठे और बाहर आकर कार में बैठे, दिन के ०२:०० बजे घर पहुंची फिर फ्रेश होकर खाना खाई और नींद के आगोश में चली गई, भैया मुझे कितनी बार और चोदते आगे पढ़िएगा…

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